गोखरू का उपयोग

परिचय in detail

गोखरू का उपयोग
गोखरू का उपयोग

In detail:इसे हमारे स्थानीय भाषा में लोग इसे केथुवा कहते हैं संस्कृत में इसका नाम आर्तगल है और इसका लैटिन नाम Xanthium strumarium L. (जैन्थियम स्ट्रूमेरियम), लोकभाषा में लोग इसे छोटा धतूरा भी कहते हैं और छोटा गोखरू भी कहते हैं।

कुल:in detail:Asteraceae (ऐस्टरेसी)

अंग्रेज़ी नाम: Cocklebur (कॉकलबर)

संस्कृत-आर्तगल नीलाम्लान, नीलपुष्पा;

हिन्दी-वनोकरा (Banokra);

in detail:

यह मूलतः यूरेशिया एवं उत्तरी अमेरिका में इसका पौधा प्राप्त होता है। भारत के समस्त उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में सड़कों तथा खेतों के किनारे तथा हिमालय क्षेत्रों में 1500 मी की ऊँचाई पर प्राप्त होता है। हमारे क्षेत्र के स्थानीय लोग इसे बस एक खर पतवार ही समझते हैं जो आते जाते पगडंडियों के किनारे अक्सर मिल जाता है और इसका फल कपड़ों में लग गया तो निकालने में हालत खराब हो जाती है। यह हमारे खेत में ऐसे ही खर पतवार की भांति ही ढेर सारे ज़मीन में फैला हुआ है।अब आइए जानते हैं इसे आयुर्वेद में क्या दर्जा दिया गया है।

गोखरू का उपयोग और लाभ in detail

आर्तगल का पञ्चाङ्ग कटु, शोधक, अवसादक, तिक्त, कफवातशामक होता है।

यह कुष्ठ, शूल, कण्डू, व्रण, शोफ तथा त्वक् विकारों में लाभप्रद है। प्रयोग कफ-विकार, विषमज्वर, मेद, शिरशूल, गुल्म तथा आभ्यंतर विद्रधि की चिकित्सा में किया जाता है।

इसके फूल शीतल तथा प्रशामक होते हैं।

आर्तगल के पत्र स्तम्भक, मूत्रल तथा फिरङ्गरोधी होते हैं।

आर्तगल की मूल तिक्त, बलकारक, व्रण, रोमकूपशोथ तथा विद्रधिनाशक होती है।

इसे छोटा गोखरू भी कहते हैं इसलिए यह मूत्रल भी है और मूत्रगत विकारों में अनेक रूप से लाभकारी है।

मूत्रविकार-आर्तगल पञ्चाङ्ग (10-20 मिली) के सेवन से अनेक मूत्रदाह, मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्राश्मरी आदि मूत्र संबंधित बीमारियों तथा श्वेत प्रदर में लाभ प्राप्त होता है।

आर्तगल पुष्प या कोमल फलों को पीसकर शरबत बनाकर पिलाने से यह मूत्रल होता है तथा फिरङ्ग रोग में लाभप्रद होता है।

प्रयोज्याङ्ग : in detail :पञ्चाङ्ग, पत्र, मूल, बीज तथा फल।

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