Brahmacharya rules in Hindi, आहार;निद्रा और ब्रह्मचर्य जो धारण करने वाले प्रधान कारण (स्तम्भ) के समीप रहकर धारण करे या प्रमुख धारक की शक्ति में वृद्धि कर दे उसे उपधारक या उपस्तम्भ कहते है। जैसे घर को धारण करने वाले मुख्य स्तम्भों (खम्भों (Pillar)) के निकट उनको बल प्रदान करने वाले स्तम्भों को उपस्तम्भ (Sub pillar) संज्ञा दी जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति के शरीर को बल, वर्ण व आयु (Strength, complexion & Longevity) प्रदान करने के कारण आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य (Diet, sleep & celibacy) को उपस्तम्भ कहा गया हैं।
Brahmacharya rules in Hindi:- उपस्तम्भ in detail
इन तीन उपस्तम्भों के युक्तियुक्त प्रयोग द्वारा स्थिर शरीर बल, वर्ण व उपचय (वृद्धि) को प्राप्त करता रहता है, जब तक आयु का संस्कार रहता है। ये तीनों चीजें आपके दोषों को संतुलित रखने में मदद करती हैं।आहारआहार वह है, जिसे जीव भोजन (खाद्य, पेय, भक्ष्य, या लेहा) के रूप में ग्रहण करते हैं। आहार का सीधा मतलब है आपका खानपान, और यह हमारे जीवित रहने के लिएसबसे ज़रूरी चीजों में से एक है। हमारे वेदों में आहार को ही जीवन कहा गया है।असल में देखा जाए तो आहार स्वयं में औषधि है। नियमित संतुलित आहार का सेवनकरने से सभी धातुओं और दोषों को पोषण मिलता है।
Brahmacharya rules in Hindi:- आहार का महत्व (Significance of food) in detail
आपके खानपान का प्रभाव सिर्फ़ शरीर पर ही नहीं बल्कि आपके मन पर भी पड़ता है। लेकिन आप जो कुछ भी खाते हैं वो सिर्फ तभी आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा जब आप खाने को सिर्फ स्वाद के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए खायेंगे।अच्छी और बुरी सेहत दोनों ही आपके खानपान पर निर्भर हैं। आहारसंभवं वस्तु रोगश्चाहार संभवः । हिताहित विशेषात्तु विशेषो सुखादुःखयोः ।। (च० सू० 28/45) यह शरीर आहारोत्पन्न (Yield by food) है, साथ ही इस शरीर में उत्पन्न व्याधियाँ भी आहार से ही उत्पन्न होती हैं। तथा विशेष रूप से आहार के ही हित व अहित (Wholesome & Unwholesome) भेद व्यक्ति के जीवन में सुख व दुख (Pleasure & sufferings) को उत्पन्न करने वाले होते हैं।
चरक ने आहार सेवन से जुड़ी आठ विशेष बातें बताई हैं अष्ट आहारविधिविशेषायतनानि : in detail
- आहार के आठ विधि विशेषायतन होते हैं यथा- प्रकृति, करण, संयोग, राशि, देश, काल, उपयोग संस्था, उपयोक्ता ।।
- “सर्व रसाभ्यासो बलकराणां ।।
- एकरसाभ्यासो दौर्बल्यकराणाम् ।। (च० सू० 25/40)
- सभी अर्थात् छः रसों का अभ्यास व्यक्ति के बल की वृद्धि (Strength promoting)
- करने में एवं एक रस का अभ्यास दौर्बल्य (Debilitating) उत्पन्न करने में श्रेष्ठ है।।
- षड्रस भोजन महत्व।।
निद्रा in detail
जब मन अपने कार्यों से थक (Exhausted) जाये एवं इन्द्रियाँ भी थकने के कारण अपने विषयों को ग्रहण न करे, इस अवस्था में प्राणी को नींद आ जाती है हमारे स्वास्थ्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ नींद है। अगर आप तनाव या किन्ही अन्य कारणों की वजह से भरपूर नींद नहीं ले पा रहे हैं तो इससे कई बीमारियां हो सकती हैं। दरअसल अच्छी नींद लेने से शरीर की सभी मांसपेशियों और अंगों को आराम मिलता है। जिससे अगली सुबह वो फिर से तरोताजा होकर अपने काम के लिए तैयार हो सकें।अतिनिद्रासभी विषयों में अचिन्ता (Negligent), संतर्पण (पौष्टिक एवं श्लेष्म व मेदोवर्धक आहार-विहार (Saturating dict)) के सेवन, तथा अधिक निद्रा (Excessive indulgence in sleep) के सेवन से मनुष्य वराह (Boar) के समान अतिस्थूल (Obese) हो जाता है।
Brahmacharya rules in Hindi:- वयानुसार आवश्यक निद्रा अवधि (Period of sleep.
वयानुसार आवश्यक निद्रा अवधि At least
- 0-2 माह.12-18 घण्टे at least,
- 3 माह 1 वर्ष14-15 घण्टे at least,
- 1-3 वर्ष.12-14 घण्टें है at least,
- 3-5 वर्ष.11-13घण्टें है at least,
- 5-12 वर्ष.10-11 घण्टें है at least,
- 12-18 वर्ष.8.5-10 घण्टें at least,
- 18 व अधिक वर्ष.7.5-9 घण्टें है at least,
युक्त निद्रा के लाभ (Benefits of Proper sleep) Brahmacharya rules in Hindi
निद्रायत्तं सुखं दुःखं पुष्टिः कार्य्य बलाबलम् ।वृषता क्लीबता ज्ञानमज्ञानं जीवितं न च ।। (च० सू० 21/36)युक्त निद्रा लेने से जीव को सुख (आरोग्य (Happiness)), पुष्टि (पोषण Corpulence), बल (Strength), वृषता (Potency) (शुक्र की वृद्धि), ज्ञान (ज्ञानेन्द्रियों की अपने विषय में उचित प्रवृत्ति Intellect) एवं आयु (Longevity) की प्राप्ति होती है। निद्रा न लेने या आने पर वह दुःख (Misery) (रोग), कृशता (Leanness), बल की हानि (weakness), नव नपुंसकता (Impotency), अज्ञान (Non intellect) (ज्ञानेन्द्रियों का अपने विषय में प्रवृत्त न होना), एवं of अकाल मृत्यु (death) को प्राप्त करता है।दिवा स्वप्न (Day sleep)ग्रीष्म ऋतु को छोड़ कर अन्य सभी ऋतुओं में दिन में शयन करने से कफ और पित्त का (चरकानुसार) या त्रिदोष का (सुश्रुतानुसार) प्रकोप होता है। अतः ग्रीष्म से अतिरिक्त ऋतुओं में दिन में शयन नहीं करना चाहिए।
Brahmacharya rules in Hindi:-Celibacy) in detail
(Celibacy)ब्रह्मचर्य ब्रह्म शब्द के दो अर्थ है ज्ञान (Knowledge) एवं वीर्य (Semen)। इन दोनों का संयमपूर्वक प्रयोग ब्रह्मचर्य कहलाता है। ब्रह्मचर्य से तात्पर्य वीर्य की रक्षा (मैथुन का नियमनुसार प्रयोग) कर स्वस्थ जीवन प्राप्त करने से है शरीर का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण उपस्तंभ ब्रह्मचर्य है। हम जो भी खाते पीते हैं वो चीजें पचने के बाद धातु बनती हैं इन्हें ही ‘वीर्य’ या ‘रज’ कहा गया है। शरीर की शक्ति इसी वीर्य पर ही निर्भर करती है। (रस… रक्त …मांस… मेद… अस्थि… मज्जा… शुक्र)
ब्रह्मचर्य पालन करने के फायदे Brahmacharya rules in Hindi
ब्रह्मचर्य (मैथुन का नियमनुसार प्रयोग) का पालन करने वाले की आयु (Longevity), आरोग्य (Health), सुख (Happiness), व्यक्तित्व (Personality), पौरुष (Masculinity), पराक्रम (Physical ability), बल (Strength), एवं सम्मान (Respect) सभी में वृद्धि (Increases) होती है। शरीर को धारण करने वाले तीन उपस्तम्भों (Pillar) में ब्रह्मचर्य का महत्वपूर्ण स्थान हैसंसार के प्रत्येक व्यक्ति में मैथुन या काम की इच्छाजाग्रत (Awakening of will) होती है अगर यह पूरी न हो (If not fulfilled) तबव्यक्ति में मेह (Urinary ney disorder), मेदो वृद्धि (Obesity), और शरीर मेंनक्ति शिथिलता (Passiveness) उत्पन्न होती है।
After all कामैषणा (Desire of sex)
वस्तुतः जीवन की एक प्रमुख आवश्यकता है। इसीलिए हमारे आचार्यों नेनियमानुसार मैथुन कर्म में प्रर्वत्त होने की अनुमति दी है। अतः ग्रहस्थ आश्रम (Householder) में प्रत्येक व्यक्ति को ग्राम्यधर्म का पालन करना चाहिए।